________________ धम्मि- ऽनटपैरप्यपरैः शरैः // 37 // विहितालीढसंस्थानः / स यत्नान्मुमुचे शरं // अपश्यन्निजदृष्टित्वात् / / पादपृष्टस्थितं बिलं // 30 // पिपासुः पवनं प्रात-बिलाट्यालो विनिर्गतः // तं ददंश च हिंस्राः स्युः / खलवबलघातिनः // 30 // विछो व्याधेषुणा नागो। नगश्विन वापतत् // व्याधोऽपि फणिना दष्टः / प्राणैस्त्यक्तावुनावपि // 40 // व्याधेन पतता पृथ्व्यां / विषव्याकुलवर्मणा // लु. मः शिलातलेनेव / सद्यः सर्पो व्यपद्यत // 41 // कोऽपि विद्याधरो व्योम्ना / वजन वीक्ष्य तदद्तेवो नहोतो. // 37 // पजी तेणे स्थिर थश्ने यत्नपूर्वक बाण मार्य, परंतु ते वखते तेनी दृष्टि हाथी तरफ होवाथी पग पाडळ रहेg बिल तेणे जोयु नहि. // 37 / / एवामां प्रभाते पवन पी. वानी श्वाथी ते सर्प बिलमाथी बहार निकल्यो, थने तेने मंख्यो, केमके हिंसक प्राणीन खल. नीपेठे बलथी घात करनारा होय . // 35 // हवे ते पाराधिना बाणथी वांधायेलो ते हाथी कपायेला पर्वतनीपेठे पड्यो, अने सर्प मंखेलो ते पाराधि पण पड्यो, अने तेन बन्ने प्राणरहि. त थया. // 40 // विषयी व्याकुल शरीरखान तथा शिलानीपेठे पृथ्वीपर पडता ते पाराधिए च. गदेखो सर्प पण तुरत मरण पाम्यो. // 41 // ते वखते याकाशमार्गे चालतो कोश्क विद्याधर | Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S.