________________ धम्मि- तया समर्पि तैर्यत्र-पीडितपांमुपुंमकैः // किं / कूर्च कैः करोम्येजि-रिति सा प्रत्यवोचत ॥२॥सा. थ लब्धावकाशाऽवक् / कोपकंपोष्टपञ्चवा / निःसारवस्त्वादरिणी / प्रियप्राप्तौ विषीद मा // 26 // साथै निःसारो यदि "यं / जातस्ते प्रीतिकारणं // तहस्त्रखाद्यषाधं / देयं निःसारमेव ते // 17 // सा विज्ञाततदाकूता / वाचमूचे किमंब ते // गतं दृग्धाम यन्नैषां / गुणं संतमपीवसे / मिदग्धैरपि द्वारो / योऽमीनिः किल जायते // वासोमलीमसं शोधु-मलं कस्तं विनापरः ॥रणा लेली श्वेत शेस्मी आपी, त्यारे वसंततिलका बोली के था कुचानने हं शुं करूं? // २५॥त्यारे क्रोधथी कंपता नष्टपल्लववाळी ते कुटपीए पोताने अवसर मलवायी को के हे निःसार वस्तुना यादरवाळी पुत्रि! तने वा मनगमतुंज मव्यु , माटे खेद न कर? // 26 // श्रा साररहितान तार ज्यारे तने प्रीतिना कारणरूप थयो , त्यारे वस्त्र, भोजन तया या षणयादिक पण तने साररहितज देवु जोश्ये. // 27 // त्यारे तेणीनो अभिप्राय जाणीने वसंततिलका बोली के से माता! शुं तारं अांखोनुं तेज नष्ट थयु जे ? के जेथी आना बता गुणने पण तुं जोती नयी.॥ // 20 // या कुचाउने अमिमां बाळवाथी तेनो जे खार थाय बे, तेनाविना कपमांनो मेल को | P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust