________________ धम्मि- N-मुपकारतरोः फलं // 2 // तप्तविके थपि स्वर्ण-मौक्तिके जगतः श्रिये / / सौरन्यहेतू श्रीखमा -गुरू क्षुप्लोपधावपि // 3 // रसाय पीमितोऽपीकु-धमप्यंबु शस्यकृत् / / भृशं कुसुंभमंजिष्टे / रंगा य क्षुमखंमिते // 4 // धान्याय नहलैः कृष्टा / रत्नेन्यो मथितोबुधिः // परार्थनिरताः संतः। स्वं | दुःख गर्यति न // 5 // शृणु सौम्य ममास्त्येको / मंत्रः सजुरुणार्पितः / / यं मे साधयतोऽगद्वत्स संवत्सरीष्टकं // 6 // अथैकरजनीसाध्या / सिधिस्तस्यावशिष्यते / / सा च सत्त्ववदायत्ता / न यनी मागणी करे . // // स्वर्ण अने मोतीने तपाब्याथी तथा वांध्याथी पण जगतने पा. नुषणरूप थाय बे, तेमज चंदन अने अगुरु घस्याथी तथा बाव्याथी पण सुगंधना हेतुरूप थाय जे. // 3 // सेलडी पील्या बता पण रस आपनारी थाय , बांधेलु जल पण धान्य नीपजावनाएं थाय ने तेम कसुबो बने मजीठ अत्यंत कचर्याथी तथा खांड्याथी रंग यापनारां थाय . // 4 // हलोथी खेडेली पृथ्वी धान्य देनारी थाय , मथेलो समद्र रत्न यापनारो थाय बे, एवी रीते परोपकारमा रक्त थयेला पुरुषो पोतार्नु दुःख गणकारता नयी. // 5 // हवे हे सौम्य ! तुं सांग ल? मारी पासे सजुरुए आपेलो एक मंत्र के जे मंत्रने साधतां थका हे वत्स ! मारां आठव P.P. Ac Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust