________________ धम्मि- स्य का // 4 // श्रुताचारधनौदार्य-शमस्थाम्नां विनेदविद् // लोकोत्तरत्वं वक्त्येषा / कृतिनाक तिरेव ते // ए // वज्रदंमौ दिषां कंठे / पद्मनालोपमौ सतां // विव्रतस्ते जुजो शेष-शोगां जु. भारधारणे // 1200 // परार्थैकधियो धन्या / मध्यास्तु स्वार्थसाधकाः // न परार्थ च न स्वार्थ / 160 साधयंत्यधमाः पुनः / / 1 // धनं कापि यशः कापि / पुण्यं कापि ययाक्रमं // नीचपध्योत्तमैः प्रा. छ परात्र मवाळा ते कुमारसाथे योगीए वात शीरु करी के, हे कुमार तुं तो घमारा हृदयमांज बेगे, तो पजी या चर्मासननी तो वातज शुं करवी? // 7 // वळी हे कृतार्य! या तारी प्रा. कृनिज ज्ञान, आचार, धन, नदारता, शांतता, तथा परात्र मना भेदविनानुं तारुं लोकोत्तरपणुं सू. चवे . // ए // शत्रुना कंठपर वज्रदंडसरखा तथा सऊनोना कंठपर कमलनालसरखा तारा बन्ने हाथो पृथ्वीनो भार धारण करवामां शेषनागनी शोभाने धारण करे . // 1200 // उत्तम मनुष्यो एक परोपकारनीज बुध्विाळा होय , अने मध्यम मनुष्यो स्वार्थ साधनारा होय . प रंतु अधम मनुष्यो तो परमार्थ के स्वार्थमानुं कई पण साधी शकता नथी. // 1 // नीच मध्यम | अने उत्तम पुरुषो अनुक्रमे नपकाररूपी वृदाना फलरूप क्यांक धन क्यांक यश अने क्यांक पु. P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust