________________ धम्मि- स कोऽपीदितः दितौ // 7 // अद्य त्वयादिते सत्त्व-वतां सीमनि मे मनः // मनाक्सौम्य समा. धत्त / दृष्टार्कमिव पंकजं // 7 // तघीर धीयतां साधू-तरसाधकतां तथा // मंत्रसिधिश्व कीर्तिश्च / मां च त्वां च यथांचतः // // कुमारोऽवग् नृकीटस्य / ममालं श्लाघयानया / आदिशध्वं य. 262 तिष्ये वः / क कदा कार्यसिधये // 10 // अस्यां कृष्णचतुर्दश्यां / तिथौ यामे गते निशः // स्म. o व्यतीत थयां . // 6 // हवे फक्त तेनी सिहि थवामाटे एक रात्रि बाकी रहे, परंतु ते मः हाहिम्मतवान पुरुषने आधीन बे, अने तेवो हिमती माणस को पण पृथ्वीपर देखातो नथी. // 7 // परंतु हे सौम्य ! हिमतवानोमां शिरोमणि एवा तने आजे जोवायी सूर्यने जोवाथी जेम कमल तेम जरा मारा मनमां समाधान थयुं . // 7 // माटे हे धीर पुरुष! तुं मारुं उत्तरसाध. | कपाणु एवी नत्तम रीते बजाव के जेथी मंत्रसिधि मने अने कीर्ति तने शोजावे. // ए // त्यारे गुणवर्मा कुमार बोल्यो के हे योगीराज! मारी मनुष्यरूप कीडानी बाटली बधी श्लाघा करवानी कई जरुर नथी, परंतु कहो के क्यां घने कये समये आपना कार्यमाटे हुं प्रयत्न करूं? // 10 // | ( त्यारे योगी बोल्या के ) हे सौम्य ! था कृष्ण चतुर्दशीने दिवसे पहोर रात्रि गया बाद त्रण * P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust