________________ धम्मि-| शानेऽहं समेष्यामि / सौम्य शिष्यत्रयान्वितः // 11 // तत्रागम्यं त्वयापीति / पीतवान् योगिनो वः / | चः // मित्युक्त्वा तदादेशा-द्ययौ स स्वं निकेतनं // 15 // युग्मं // नियावय चतुर्दश्यां / कृ. तदैवसिकक्रियः // निर्दोषः स प्रदोषेऽधा-दंठवेषमकुंठधीः // 13 // अननुशाप्य पितरा-वनापृ. 263 ज्य सखीनपि // सोऽलक्ष्यस्तमसा खा-सहायो निर्ययो गृहात // 14 // अशूकशाकिनीकेलि कंदुकन्नरमस्तकं // एकरुंडार्थसंवाद-दायादायितरादासं // 15 // कपालिपालिनिर्मत्र-सिध्यै शिष्योसहित हुं श्मशानमां श्रावीश, // 11 // माटे तारे पण त्यां श्रावq. एवी रीतनो तेनो ह. कम स्वीकारीने ते राजकुमार पोताने घेर गयो. // 12 // हवे चतुर्दशीने दिवसे देवसिक क्रिया करीने ते निर्दोष अने तीदणबुध्विाळा गुणवर्मा कुमारे मल्लजेवो वेष धारण को. // 13 // 1. जी ते मातपिताने पण जणाव्याविना थने मित्रोने पण पूज्या विना अंधारामां कोश्ना पण ल. दमां न आवे एवी रीते खा लेश्ने घेरथी निकल्यो // 14 / / कंश पण सूगविनानी शाकिनी. माटे क्रीडा करवाना दडासरखी ने मनुष्योनी तुंबडीन ज्यां, तथा एक कलेवर लेवावाटे पितराइ. | योनीपेठे पाचरण करता ने रादसो जेमां, // 15 // कापालिक योगीनए मंत्रसिधिमाटे मुमदां. P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aarac