________________ धम्मि निरसुवर्मसु // ध्रियमाणेषु माशैः / फेरमैः कृतविश्वरं / / 16 // पारे पुरमसौ सत्व-संगतःस. त्वरं गतः / / प्राप प्रेतवनं रंक-करकशतसंकुलं / / 17 // निनिर्विशेषकं / / आगबागल वत्सेतिवादिने प्राप्तपूर्विणे // तत्रातहोमविधये / योगिने समगस्त सः // 10 // योगी तं स्माह मन्मंत्रसिधिस्तव वशंवदा // ऋदाकारनिदाका / एव शिष्या अमी मम // 17 // स स्माह यूयं मा भैष्ट / विघ्नेन्यो मयि रदके // स्वाधिने गरुडास्त्रे किं / जवेनौजंगमं जयं // 20 // कुमारं दिशि नने ले लेवाथी निराश थयेला शियाळीयानना पोकारवाळ // 16 / / तथा सेंकळोगमे रंकोना मुमदांनथी भरेबुं एवं नगरनी बहार रहेछु जे प्रेतवन तेमां ते हिम्मतवान राजकुमार तुरत गयो. // 17 // वत्स! पाव श्राव? एम कहेता तथा हवननो सरंजाम लेश्ने तेनी पहेलांज त्यां गयेला एवा ते भैरवनाथ योगीने ते मव्यो. // 17 / / पजी योगीए तेने कह्यु के मारा मंत्रनी सिछि तारे याधीन , या मारा शिष्यो तो इंद्रनो वेष धरनारा निखारीसरखाज . // 15 // त्यारे गुणवमां कुमार बोल्यो के ज्यांसुधि हुँ उत्तरसाधक ढुं त्यांसुधि तमारे विघ्नोथी डर्बु नहि, केमके जो | गरुमात्र स्वाधीन होय तो पनी सर्पनो जय शुं होश् शके ? // 20 // पनी ते योगीराजे उत्तर P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust