________________ 205 धम्मि- देहातिवर्षनं च / तन्मद्यमुद्यबति को निषेधुं // 43 // हृदो मृषा शव्यमपैति येन / येन ख| देहेऽपि ममत्वभंगः // बाढये दरिऽपि यतः समाधि-बुंधा मुधा मद्यमिदं त्यति // 44 // ध. पेत्येके हसंत्येके / जल्पंत्यन्ये यथा तथा / तथापि दृढयोगीव / न दीवः कापि कुप्यति // 4 // मधुपा यत्र खेलति / मधु यत्रोपजायते / तत्रांबुजे वसंती श्री-रवि विद्देष्टि नो मधु // 46 // दशधाकल्पवृदाणां / प्रथमे मद्यदायिनः // चतुर्दशसु रत्नेषु / मद्यमंतरधीयते // 4 // द्विषः सुखं | नो निषेध करवाने कोण उद्यमवंत थाय ? // 43 // वली जे मद्यथी हृदयनुं खोटुं शव्य निक ली जाय , तथा जेथी पोताना शरीरनी पण ममता रहेती नथी, वली जेथी तवंगर तथा गरी. ब बन्नेने समाधि थाय , माटे यावा गुणवाला मद्यने तो पंडितो फोकट तजे . // 4H || व. ली ते मद्यपान करनार मनुष्यने को निजं , कोश् हसे बे तथा को जेम तेम बोले . तो पण ते महोटा योगीनीपेठे कोपर पण गुस्से थतो नथी. // 45 // ज्यां जमराज क्रीमा क. रेने तथा जेमां मद्य नत्पन्न थाय , ते कमलमा रहेती लक्ष्मी पण मद्यने धिक्कारती नथी. // | // 46 // दश प्रकारना कल्पवृदोमां पण पहेलां मद्य देनारां कल्पवृदो , तेम चाद स्नोमां प. P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust