________________ धम्मि- कृषंतीना / मद्योपचितशक्तयः // आपणाः कल्पपालाना-मत एवोनितध्वजाः // 4 // तदाशु मा पिब मैरेयं / केयं वह्वी विमर्शना // निजस्थानोचितं चेष्ट-मानो न खलु निंद्यते // 4 // इ. त्युक्तः स तया ब्रष्ट-कुलाचारः सुरां पपौ // यत्रैकं व्यसनं तत्र / संयुज्यंते पराण्यपि // 10 // बुगन्निद्रालुवत्पृथ्व्यां / शिथिलांगो मुमुटुंवत् // परासुखि निश्चेष्टः / स मधेन क्रमात्कृतः // 51 / / स्त्रीराज्यमिव कुर्वाणे / गाणिक्ये जरतीगिरा // पारे पुरं प्रदोषेऽसौ / दासीनिः परितत्यजे // 1 // ण मद्य गणाय . // 47 / / मद्यपानथी बळवंत थयेला हाथीन शत्रुनने सुखें मारी शके डे, त. था तेथीज किलालोनी दुकानोपर धजा फरके . // 4 // माटे तुं जलदी मद्यपान कर ? शामाटे घणो विचार करवो पडे ? पोताना स्थानने उचित आचरण करनारो कई निंदातो नथी. // 4 // एवी रीते तेणीना कहेवाथी धम्मिले पण कुलाचारथी ब्रष्ट थश्ने मद्यपान कर्यु, केमके ज्यां एक व्यसन होय जे त्यां बीजां व्यसनो पण जोमाय . // 20 // परी मद्यपानथी ते अनुक्रमे निद्राबुनीपेठे जमीनपर लोटवा लाग्यो, मरनारनीपेठे शिथिल अंगवाळो थयो, तथा मरेलानीपेठे चेष्टारहित थयो. // 51 // स्त्रीराज्यनीपेठे गणिकानो समूह थाचरते बते ते डो. | P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust