________________ धम्मि- पीछे लुवतस्तस्य / सकलामपि शर्वरीं / अनूप्रतभूबाय-मसहिष्णुर्दिनोदयः / / 53 // तदा. | ईतेषु चैत्यैषु / मांगव्यः कंबुरध्वनत् // निशि प्रसुप्तं श्रीधर्म-पमुद्रोधयन्निव // 24 // अनुयां ती विधु कांतं / राविस्तारकबूषणा / / न जास्करकरस्पर्श-मपि सेहे पतिव्रता // 55 // स्तोक२०७ कालं ममाजावे / तमसा जग्रसे जगत् // इति रोषादिवारक्त-मूर्तिमार्तड उद्ययौ // 56 // अ. थ जागरितः पूष्णा / स्वकरैः कृपयेव सः // स्वं रिजरजोलिप्तं / निरीदयेति व्यजावयत् / / 57 // करीना वचनथी दासीए ते धम्मिलने संध्यासमये नगरनी बहार फेंकी दीधो. // 5 // त्यां प्रा. खी रात पृथ्वीपर लोटतां थकां पृथ्वीपरनां घणा गयाने नहि सहन करनारो दिवसनो उदय थ. यो. // 53 // ते समये जिनमंदिरोमां रात्रिए सुतेला धर्मरूपी राजाने जाणे जगामतो होय न. हि तेम मंगलिक शंखनाद थवा लाग्यो. // 54 // वळी ते वखते तारारूपी बाजूषणोवाळी रात्रिरूपी पतिव्रता स्त्री पोताना स्वामी चंनी पाबळ जतीयकी सूर्यना करस्पर्शने पण न सहन करवा लागी. // 55 // मारी थोमा समयनी गेरहाजरीमां अंधकार पाखा जगतने गळी गयो, एम विचारी जाणे क्रोधथी होय नहि तेम लाल मूर्तिवाळो सूर्य उदय पाम्यो. // 26 // वे सर्व | P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust