________________ धम्मि- क तत्सौधं क तत्तत्पं / क सा कांता मनोरमा / ममादृश्यम दिव्य-मायामयमिवाखिलं // 1 // मा किमन्यजन्म किं स्वप्न---मुत मायाथवा ब्रमः / / यत्तादृशं सुखं भुक्त्या / बुउन्नस्मि महीतले // // न मया कोपितः कोऽपि / नयेद्यो मामिमां दशां // नूनं निर्धनतादोषा-कारत्या त्याजितस्तया / | // 60 // ददे यस्यै परातिः / परावृतिस्ततो मया // लेभे तदस्याः को दोषो / नाशो दत्तस्य | जाणे दयाथीज पोताना किरणोथी जगाडेलो ते धम्मिल पोताने जमीनपरनी घणी धूमथी खरमायेलो जोश्ने विचारखा लाग्यो के, // 57 // अरे! ते महेल, ते शय्या तथा ते मनोहर स्त्री विगेरे क्यां गयु ! या सघळू मने दिव्य मायानीपेठे अदृश्य थ३ गयु ! // 27 // शुं मारो पु. नर्जन्म थयो ? अथवा शुं था स्वप्न बे ? अथवा माया के भ्रम जे ? के जे हुँ तेवू सुख जोग. वीने पृथ्वीपर लोटतो पड्यो बुं ! / / 57 // में कोइने गुस्से को नथी के जे मने था दशाए पहोंचाडे, खरेखर निर्धनपणाना दोषग्री मने ते मोकरीए फेंकावी दीधो . // 60 // जेणीने में परा ऋति एटले घणुं धन प्राप्यु , तेणीना तरफथी मने परावृति एटले था पराभव मल्यो , तेमां तेणीनो शुं दोष बे, केमके दाननो नाश नथी, अर्थात् जेवं देवु तेवू लेवू . // 61 // | P.P.AC. Gunratnasuri M.S. . . Jun Gun Aaradhak Trust