________________ १एन धम्मि / दाता मातर्मयोज्झ्यते // स्वं न श्वानं तदा मन्ये / मनाग्दातुः सदानुगं / / 11 // इति तहचः / मा नाधार-धारधोरीकृतोऽमुचत् // वचःस्फुलिंगकानेव-मका कोपवृषाकपिः // 12 // अवदतपू. वस्ते / पुत्रि कोऽयं कदाग्रहः // विचारश्चारुबुद्धीनां ।न युक्तो गुरुशासने // 13 // याः स्खलक्ष्यममुंचंत्यः / कुवैति जनरंजनं // योगिनीनामिवैतासां / वेश्यानां प्रेम दूषणं // 14 // हीरर्थिनि दया व्याधे / कितवे सत्यसारता / वानरे स्थेम वेश्यायां / प्रेमावश्यं विवना // 15 // विधाय तदमुं थाटला बधा धनना दातारने पण जो हुँ तजी देनं तो हुँ थोडं देनारनी पारळ पण हमेशां ज नारा एवा श्वानसरखा पण मारा था.माने हुं मानी शकुं नहि. // 11 // एवी रीतनां तेणीनां व. चनोनो तिरस्कार करनारां वचनरूपी तणखानने क्रोधरूपी अमिवाळी कुटणी गेमवा लागी. // // 15 // हे पुत्रि! अगाज को पण समये नहि थयेलो एवो था तने पाजे शुं कदाग्रह थयो ने ? बुधिवानोए वडीलना हुकममाटे विचार करखो लायक नथी. / / 13 / / जे पोताना लक्ष्यने गेड्याविना लोकोने खुशी करे , एवी योगिनीसरखी वेश्यामाटे प्रेम ए एक दूषण ने. // 14 // | याचकने लड़ा, पाराधिने दया, उगाराने सत्य, वानरने स्थिरपणुं, बने वेश्यानो प्रेम ए सघयु | PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust