________________ सार्थ धम्मि- तिः / / गांभीर्येण पयोराशि-रौदार्येण घनाघनः // 6 // कलाभिः कौमुदीकांतो / धारिम्णामर. | धरः // प्राप्तः प्राक्सुकृतैर्नैव / विनागस्त्यागमर्हति // 7 // युग्मं // गुणिन्येवानुरज्यंति / गुणज्ञा | न धनाश्रये // श्रीवृदमलयस्त्यक्त्वा / यांति जातिं कृशामपि // // पश्या विनवमप्याशु / गुणा 17 | ढ्यं रत्नकंबलं // संगृह्णते महीपाला / मातर्जातस्पृहा न किं // // अदत्त यदसौ वित्तं / किं सिंधूमिसधर्मणा / शांता न तेन ते तृष्णा / वाडवामिशिखासखी // 10 // यदीयतोऽपि ऽव्यस्य // 6 // कलानमां ते चंद्रसरखो ने तथा धैर्यमां मेरुसरखो ने, वळी ते पूर्वना पुण्योधीज आप. पने प्राप्त थयो , माटे अपराधविना तेनो त्याग करवो युक्त नथी. // 7 // गुणझ माणसो गु. णिमांज रंजित थाय ने, परंतु धनवानमां थता नथी, केमके जमरान चंदनने गेमीने दुर्बल ए. वां पण जाश्ना वृक्षप्रते जाय जे. // 7 // वळी हे माता तुं जो के अविनव एट्ले शोगांविनानो (घेटांना जनथी बनेलो) एवा पण गुणोवाळ (तंतुनवाळा ) रत्नकंबलने श्वापूर्वक शुं राजा. 5 तुरत ग्रहण करता नथी ? // 7 // वळी तेणे जे धन प्राप्यु , ते समुद्रना मोजांसरखा धन | थी पण शुं तारी वडवानलनी ज्वालासरखो तृष्णा नाश पामी नहि ? // 10 // वळी हे माता! P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust