________________ 196 धम्मि- सौजाग्यप्रमुखाः गुणाः // धनहीना न शोभते / विसर्पिोजनं यथा // 2 // तदाचित्करं मुंच / निर्धनत्वेन धम्मिलं // महाकविवदर्थंक-रसिका हि पणस्त्रियः // 3 // तदश्रुतिचरं श्रुत्वा / वचनं मातुरातुरा // वंसततिलकावादी-दविलंब्य वचस्ततः // 4 // श्रासन्ने मरणे मात-वैकल्यं किं तवा| गतं // देवीनामपि दुःप्रापं / यत्त्याजयसि माममुं // 5 // अयं रूपेण कंदर्पो / विवेकेन बृहस्परागवालो होय बे, तो पनी या तुब धम्मिलप्रते तुं सत्य प्रेम शामाटे धारण करे ? // 1 // जेम घृतविनानु नोजन तेम कला, कुलीनपणु. रूप नथा सौनाग्यश्रादिक गुणो धनविना शोभता नथी. // 2 // माटे हवे निर्धनपणाथी निरुपयोगी एवा आ धम्मिलने तुं छोडी दे, केमके वेश्याने तो महाकविनीपेठे फक्त एक (अर्थनाज ) धननाज रसवाळी होय . // 3 // एवी री. ते मातानुं नहि सांजळवालायक वचन सांजळीने खेद पामेली वसंततिलका तुरत बोली के, // // 4 // हे माता तारूं मरण नजीक होवाथी शुं तारी बुधि फरी ग ? के जेथी देवीनने प. ण दुर्लज एवा या धम्मिलने तजवान तुं मने कहे ! // 5 // या धम्मिल रूपें कामदेवसरखो | बे, विवेकमां बृहस्पतिसमान में, गंजीरतामां समुद्रतुव्य में, तथा नदारतामां वरसादसमान . // P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust