________________ सार्थ धम्मि- कंचि-दाढ्यं मुंच परं नरं // व्रातीनता हि वेश्यानां / समायः शमिनामिव // 16 // एवमग्न्यस्त्र | वन्मत्वा / मातुः संतापकं वचः / वारस्त्री वारुणास्त्रानं / संदधे सुंदरं वचः // 17 / / यया विचारः प्राज्ञानां / न युक्तो गुरुशासने // किं प्रपन्नपरित्याग-स्तथा संगतिमंगति // 17 // पूर्व न कि. १ए। यते स्नेहः / क्रियते वा क्वचिद्यदि / / श्रेयांस्तदयमूर्णायौ / लादाराग श्व ध्रुवः // 15 // श्यनि विमंबनारूप एटले न घटी शके तेवू . // 15 // माटे हवे को बीजा धनवान पुरुषने पोतानो स्वामी करीने याने तजीदे ? केमके मुनिनीपेठे वेश्यानुं पण समायरूप एटले धनना सारा लागरूप ( सामायिकरूप ) व्रत . // 16 // एवी रीतनां पोतानी माताना अनिशस्त्रनीपेठे सं. तापकारक वचन सांगलीने वसंततिलका वारुणास्त्रसर सुंदर वचन बोली के, // 17 // जेम बुध्विानोए वमीलना हुकममाटे विचार करवो योग्य नथी, तेम स्वीकारेलानो त्याग करखो ते वात पण शुं घटी शके बे ? // 10 / / प्रथम तो स्नेहज करवो नहि, अने कदाचित् करीए तो ते ननना कापममां जेम मजीठनो रंग तेम ते निश्चल कखो तेज कल्याणकारी . // 1 // | बाटला दिवसोमां जे में था स्थिर सिघो अने उंचो प्रेमरूपी महेल चण्यो , तेने हं मारे हा. Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S.