________________ धम्मिः // 5 // अहं तवोपकारस्या-ऽनृणः स्यां न कदाचन // तत्किं करोमि किं स्तौमि / प्रियं किं / ते ददामि वा // 13 // समस्ति चैत्रसत्तिस्ते / तत्काम्यं किमतः परं // वदनिति निशांतेगानिशांते पस्ततः // 55 // अनुनय दणं निद्रा-सुखमुन्मलितेदणः // बालातपनकाश्मीर| लिप्तामिवैदत दिति // 55 // सहसा त्यक्ततटपोऽथ / कृतप्राभातिकक्रियः // जगाम धाम कनक |-वत्या अत्यादरेण सः॥ 26 // समं तयैकतपस्य / तस्य गोष्टीं वितन्वतः // तां दिदृक्षुरिख हे वत्स ! तारा सहाययी मारो आठ वर्षासुधि साधेला मंत्रनो श्रम सफल थयो . // 5 // व ली हुँ तारा अपकारना करजथी को पण दिवसे मुक्त थ शकुं तेम नथी, माटे हं शं करु ? शुं तारी स्तुति करूं? अथवा तने शुं प्रिय वस्तु यापुं? // 53 // जो पापनी कृपा तो पनी तेथी बीजु मारे शुं जोश्ये ? एम कहीने परोढीए ते राजकुमार त्यांथी घेर गयो. // 54 // त्यां दाणवार निडासुख अनुभवीने जेवामा ते अांख जघाडे में तेवामां उगता सूर्यना तेजश्री. जाणे केसरथी लींपायेली होय नहि एवी पृथ्वीने ते जोवा लाग्यो. // 55 // पनी ते एकदम विजन गेमीने तथा प्रभातनी नित्यक्रिया करीने अत्यंत आदरमानपूर्वक कनकवतीने आवासे गयो. / P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust