________________ धम्मि- व्योम-मध्यमध्यास्त जास्करः / / 57 // अय स्वावसथं प्राप्य / स्नात्वा जुक्त्वा समुखितः // विजि झासुः प्रियावृत्तं / कुमारश्वकमे निशं // 27 // अहमस्मि त्रिजगतो-ऽथादृश्यीकरणदमा॥ स्वस्यै व त्वमिति ज्योति-दनात्तमहसन्निशा // 27 // चलचित्तोऽप्यसौ मित्र-गोष्टीरंग तरंगयन् // ग. 273 | ते यामे त्रियामाया / विससर्ज परिबदं // 60 // त्वा सिघ वादृश्य-रूपः सिघांजनेन सः // // 16 // त्यां एक बिगनापर बेसीने तेणीनी साथे ते वार्ता विनोद करवा लाग्यो, अने एम करतांथकां जाणे तेणीने जोवामाटेज होय नहि तेम सूर्य याकाशना मध्य भागमा आयो. // // 7 // पछी पोताने आवासें यावीने स्नान तथा भोजन करीने नठेलो ते गुणवर्मा कुमार पोतानी स्त्रीन. वृत्तांत जाणवानी बाथी हवे तुरंत रात्रि थाय तो ठीक एम श्ववा लाग्यो. ॥र॥ हुं तोत्रणे जगतने अदृश्य करवाने समर्थ बु. अने तुं तो फक्त पोतानेज अदृश्य करवाने समथै बगे, एम विचारी ताराना मिषयी रात्रि तेनी हांसी करवा लागी. // 27 // हवे ते कुमारे उचक मनवाळा होवा बतां पण मित्रोसाथे वार्ता विनोद करीने रात्रिनो पहेलो पहोर गयावाद | परिवारने विसर्जन को. // 60 // पी ते सिघांजनयी सिनीपेठे अदृश्य थश्ने हिम्मतथी | P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhek Trust