________________ सार्थ 203 धम्मि- केवलमीदसे // 34 // दीपः क्रियेत यद्येत वा नरिकोपमं // कंचित्प्रपंचयत्येवा-लोकमो / | कःप्रकाशकं // 35 // धक्का दध्यौ ध्रुवमियं / धूर्त्तनानेन वंचिता // नो चेनिर्धनमप्येतं / हा कथं धनदीयति // 36 / / गंमशैल श्व स्थूलो / मुधा रुध्ध्वा गृहं स्थितः // यया कयाचिद् बुध्यैव। निवास्योऽबलया मया // 37 // ततो द्रोहविनिद्रोहा-चांतचित्ता सदैव सा / नत्सवबमना पान-गो. टीमारजतान्यदा // 30 // वसंततिलका चान्यो-पि. च पण्यांगनाजनः // दुरुपायविदाऽपायि / वाथी पूर्वनीपेठे कहेनारी ते कुटणीने वसंततिलकाए निबंछनापूर्वक कह्यु के, हे माता! तुं के वळ मूर्ख बे, के था फोतरांमां तु केवळ दोषोज जोया करे बे. // 34 // जो आ फोतरांनी वाटथी दीपक करवामां आवे तो घरमां तेज करनारो लाल रंगनो प्रकाश थाय. // 35 // त्यारे ते कुटणीए विचार्यु के खरेखर ते धूर्ते याने गेली , जो एम न होय तो या निर्धन धम्मि लने पण ते कुबेरसमान केम जाणे? // 36 // मोटा खडकनीपेठे आ फोकट घर रोकीने बेठो बे, माटे हवे कॉक बुधि चलावीने मारे थाने कहामी मेलवो जोश्ये. // 37 // पनी हमेशा द्रोहयुक्त खुल्लाविचारवाळा मनवाळी ते कुटपीए एक दिवस नत्सवना मिषधी मद्यपाननी गोष्टी. P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust