________________ 130 धम्मि- कुटायितं // ए४ // दृतान् पुरुहूताना-माहानाय चतुर्दिशि // प्रैवीन्नृपोऽथ पांथानां / वसंतः मा सीकरानिव // 55 // मां पुनर्जुमिसूत्रामा / त्वामाह्वातुं न्ययोजयत् / तत्प्रसीद पुनीह्याशु / स्व शा श्रीपुरं पुरं // 76 // नृपोऽध्यायदयायुक्तं / जरसालिंगितस्य मे // चित्तमात्तव्रतस्येव / पाणि ग्रहणपाटवं // 7 // अतीतयौवनस्यापि / दृष्ट्वा विषयविप्लवं // वितनोति जरा युक्तं / पलितब. | लतः स्मितं // 7 // युक्ता शिरीषमृदंगी। सुंदरी गुणवर्मणः // अस्माकं तु दर प्रस्थ-पुटस्थपु. सिंहासनोनी श्रेणी तेलना मुकुटपणाने धारण करे . // ए४ // पठी वसंत ऋतु पंथिनने बो. लाववामाटे जेम मकरंदोने तेम राजाए नृपोने त्यां बोलाववामाटे चारे दिशाए दूतोने मोकल्या बे, // 55 // अने आपने बोलाववामाटे राजाए मने मोकडयो बे, माटे श्राप कृपा करीने था. पना चकुथी श्रीपुर नगरने तुरत पवित्र करो? // 6 // हवे राजाए विचार्य के हुं तो हवे जरायुक्त थयो बु, माटे व्रतधारीनीपेठे मारे परणवानुं मन करवू अयुक्त . // ए9 // यौवनवय वीत्याबाद पण जे विषयमां लोलुप थाय , तेनी श्वेत वाळना मिषथी जरा जे हांसी करेने ते युक्तज . // 7 // माटे ते सरसवना पुष्पसरखी कोमल शरीवाळी सुंदरी गुणवर्म कुमारने यो. PP.Ac, Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust