________________ धम्मि- न स्फुरचार–चनुषापि न लदिताः // गृहकोणकुटुंबिन्या / ते लट्या हि कथं मया // // अः / मी विश्वेऽपि विश्वक-मल्ला महागलोबुपाः // तदावदातनेपथ्या / दृदयंते सदृशा ज्ञ // 10 // सुबोधं हि वयोवेष-रूपायन श्वोदधेः // राजन्यकस्य दुर्बोधा / मुक्ता श्व गुणाः पुनः // 11 // 241 मया कश्चिदनिश्चित्य / निर्गुणश्चेद्वतो वरः / / तज्जातो राजमेलोऽयं / व्ययमात्रफलः पितुः ॥१शा निष्फलं जन्म नारीणां / नायके निर्गुणे ननु / तदद्य राजकं रात्रौ / प्रेक्ष्यं प्रबन्नया मया // 13 // हवे जे राजाननी मारा पिता पोताना स्फुरायमान मनोहर चक्षुथी पण परीदा न करी शक्या तेननी घरना खुणामां बेठेली हुं शीरीते परीदा करी शकीश ? // // जगतमां एक सुनटसर. खा तथा मने परणवाने लोलुप थयेला या सर्व राजा ते वखते मनोहर वस्त्रालंकारोवाळा मने तो सरखाज देखाशे. // 10 / / समुद्रना जमनीपेठे ते राजपुत्रोना नमर वेष तया रूप आदिक तो सुखे नळखी शकाशे, परंतु मोतीनीपेठे गुणोने नळखवा मुश्केल . // 11 // श्रने तेथी निश्चय कर्याविना जो कदाच निर्गुणी वर वराश् गयो तो था राजाननो मेळो फक्त मारा पिता. |ने खरचाबुज थ पडेलो गणाशे. // 15 // वळी जो खामी निर्गुणी मब्यो तो स्त्रीनो जन्म नि P.P Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust