________________ 242 धम्मि- अथ सख्या सहाऽलक्ष्या-कृतिनिशि निशातधीः // राजसद्मसु सर्वेषु / बनाम ब्रमरीव सा // 14 // / मा अयं विट श्वाश्लील-वाक्पटुक्ष्यितां सखि // अयं दीव श्व स्वीय-कलागण मूर्जितः // 15 // अयं व्याल श्वोत्ताल-रोषणः प्रणयिष्वपि // अयं विप्लुतवन्न्यास्थ-दावयोर्विकृतां दृशं // 16 // | अयं ग्रामीणवदिद-गोष्टीसुखबहिर्मुखः // अयं पशुविालापं / न तनोत्यतिथावपि // 17 // वदं. फल जाय , माटे बाजे रात्रिए मारे बुपा वेशथी या सर्व राजसमूहनी परीक्षा करवी. // 13 // पजी ते बुझिवाळी कुमारिका वेषबदल करीने रात्रीए सखीसहित जमरीनीपेचे ते सर्व राजानना नतारामां जमवा लागी. // 14 // हे सखी! तुं जो? था राजकुमार तो लफंगानीपेठे गलीच नाषामांज चतुर जणाय , अने आ तो बायलानीपेठे पोतानी कलाना गर्वथीज मूर्जित थयेलो जे. // 15 // था तो सर्पनीपेठे स्नेही मां पण अति रोषवाळो , अने या तो लफंगानापेठे श्रापणापर पोतानी विकारी दृष्टि फेंके . // 16 // आ तो गाममीथानी माफक विद्वानोसाथेना वार्तालापथी रहित , अने आ तो पशुनीपेठे परोणासाथे पण कई वातचित करतो नथी.॥ // 17 // एवी रीते राजाना दोषोथी मनमां असंतुष्ट थयेली ते कुमारिका गुणवर्मा कुमारने | P.P.AC. Gunratnasuri M.S. . Jun Gun Aaradhak Trust