________________ धम्मि- पांगजा / / 71 // कुमारश्चाखबन्न-प्रचारोऽथ व्यचिंतयत् // निपीयास्या श्मा वाचो / हृदयं स्फुटनीव मे // // 2 // एका पाणिगृहीतीयं / स्नेहला साप्यनारतं // पराधीनतया दुःखं / धत्ते धिग्मम पौरुषं // 73 // बध्वा तदद्य विद्वेषी / वध्य एव स खेचरः // वध्वाश्च प्रीतिरुपाद्या-ब्जिन्या श्व तमःदये // 4 // आरूढा नत्दाणायाते / विमानेऽथ प्रियंवदा // अन्वारोह्य कुमारोऽपि / प्रचचा. ही. / / 1 // बुपी पोलीसनीपेठे त्यां गुप्त रहेलो गुणवर्मा कुमार हवे विचारखा लाग्यो के मारी प्रियाना या वचनो सांजलीने तो माझं हृदय जाणे फाटी जाय जे. ॥शा एक तोया मारी परोली स्त्रीने. अने तेमां पण वली अत्यंत स्नेहवालो ने, अने ते ज्यारे पराधीनपणाग्री दुःख सहन करे . त्यारे मारां पुरुषपणाने धिक्कार . // 73 / / माटे आज तो ते मारा शत्रु विद्याधरने मारे बांधीने मारखोज जोश्ये,अने अंधकारनो नाश थवाथी जेम कमलिनीने तेम मारे था मारी स्त्रीने प्रीति नपजाववी जोश्ये. // 4 // हवे तत्दाण थावेलां ते विमानमां प्रियंवदा चमी बेठी, अने गुणवः | P.P. Ac, Gunratnasuri M.S Jun Gun Aaradhak Trust