________________ धम्मि- णिना पत्युः / प्रत्युत प्रीतिकारणं // पांसुलत्वापवादश्चे--मांसलत्वमियर्ति न // 3 // चकोरी | निशि कोकी तु / दिवा भवति निर्वृता // मया तु निर्वतिः प्रापि / पापिन्या न दिवानिशं / / Gil | निलिनी निशि निद्राति / दिवा कैरविणी पुनः // सुखं दिवा च रात्रौ च / न नियं मया सखि || // // एकतो तरि प्रीति-रन्यतः खेचराद्भयं // कियत्कालं सखि स्थेय-मीदृशे संकटे म| या // 70 // तत्तत्राद्य न यास्यामि / त्वयैव सखि गम्यतां // यद्भाव्यं तनवत्वेव-मुक्त्वा तस्थौ नृ. या कुलटापणानो अपवाद जो विस्तार न पामे तो मारा पतिना हाथे मरवू ते पण मने प्रीति करनारं . // 9 // चकोरी रात्रिए तथा कोकी दिवसे पण निरांत मेलवी शके चे, परंतु मने पापणीने तो दिवसे के रात्रिए पण विश्राम मळनो नयी. 190|| कमलिनी रात्रिए सुए , तथा कैरविणी दिवसे सुए , परंतु हे सखि! मने तो दिवसे के रात्रिए पण सुखे निद्रा मलती नयी. // 15 // एक बाजुथी मने स्वामिप्रते प्रीति ने, घने बीजी बाजुयी मने ते विद्याधरनो नय. माटे हे सखि ! अावा संकटमां ते मारे हवे केटलोक वखन रहेवू ! // 70 // माटे आज तो त्यां नहि जनं, अने तुंज जा? जे थवानु होय ते थान? एम कहीने कनकवती त्यांजर Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC. Gunratnasuri M.S.