________________ श्त धम्मि- थंचन // धीर्दिव्यस्थवत्सर्व-पथीना हि महात्मनां // 12 // मवृत्तमयमझासीत् / स्वदृशा चेन्न त. म द्वयं // यदि चान्यगिराबोधि / शोधिस्तन्नामिनापि मे // 13 // जाननय कथं नायः / सोढा द्वैप विकीमिति / / स्वैरिणीति धिया हन्या-न्मामप्येष कदाचन // 14 // भिंद्याविद्याधराधीशं / तत्र ग. त्वा कदाप्यसौ // यहा कुर्यात्स एवास्य / दशां दुहृदभीप्सितां / / 75 // अनया चिंतया तन्धि / जातास्मि भृशमाकुला / कार्ये दैवस्य वश्येऽस्मिन् / न जाने किं भविष्यति // 16 / / मृयुर्मे पा. | वळे ने. // 72 // वळी या मारा स्वामीए मारुं वृत्तांत जो पोतानी आंखोथी जोयुं होशे तो मने जय नथी, पण जो अन्यना कहेवाथी जाण्यु होशे, तो ते मारु कलंक अमिथी पण शुरू शके तेम नथी. // 73 // वळी ते मारा स्वामी मने बे मार्गे चालनारी जाणीने केम सहन कर शे? वळी या स्वेबाचारी , एवी बुद्धि लावीने कदाच मने ते मारी पण नाखे. // 14 // वळी | कदाचित् ते त्यां जश्ने ते विद्याधरपतिने पण मारी नाखे, अथवा ते विद्याधरज कदाच दुर्जनों | ने इलित एवी तेनी सुर्दशा करे. // 15 // एवी रोते हे तन्वि! हुं या चिंताथी अत्यंत व्याकु. | ल थ ढुं, अने या दैवाधीन कार्यमा हवे शुं थशे? ते जाणी शकातुं नथी. / / 76 // मारो P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust