________________ . शा६ धम्मि- नैतत्स्थानं स्मराम्यहं / स प्रोचे तर्हि पृलामुं / मित्रं मे गणिकोत्तमं // 16 // झानं विघटतेऽमुष्य / नाईदच श्व कचित् // मंदवसौ किंकिणीभ्रंश-जूमि त्वां झापयिष्यति // 17 // एवं शधिया तेन / विपलब्धान्यधत्त सा // किंकिणीयं क मे ब्रष्टा / वद कोविद देवर / / 10 / सोऽपि जाननजिप्राय / कुमारस्याब्रवीदिति // दक्षे प्रातरिदं वदये / झावा लमोपदेशतः // 15 // एवं वित्र. ममुत्पाद्य | तस्याः सरलचेतसः // स्वस्थानं गुणवर्मा च / सागरश्चापि जग्मतुः // 20 // कृत: पूज्वाथी ते श्रीषेण राजानी पुत्री बोली के. // 15 // हे स्वामी! पूर्वनवना वृत्तांतनीपेठे ए स्थाननी मने यादी नथी, त्यारे ते बोल्यो के त्यारे ज्योतिषी-मां श्रेष्ट एवा था मारा मित्रने तुं पु. उ? // 16 // अरिहंतना वचननीपेठे तेनुं ज्ञान जूठं पडतुं नथी, अने तेथी ते तने जलदी घु. घरी पमवानुं स्थान देखाडी प्रापशे. // 17 / / एवी रीते तेनी शबुछियो उगायेली ते बोली के हे चतुर देवर ! तुं कहे के मारी था घुघरी क्यां पमी हती? // 10 // त्यारे ते पण कुमारनो य. निप्राय जाणीने बोब्यो के, हे दद! प्रभाते लगना उपदेशथी जाणीने हं तने ते कहीश. / / // 17 // एवी रीते ते सरल मनवाळी कनकवतीने विन्रम नपजावीने गुणवर्मा तथा सागर बन्ने | P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust