________________ 316 धम्मि- ज्यधायि मा शोची-पदर्थ प्रियते त्वया // संगस्यते स ते प्रर्ता / व्यहेऽतीते ममाश्रमे // // माई इत्याशाकीलितपाणा-नीता सेयं मयाश्रमे // फलाजीत्रिकयातीये / कथंचन दिनत्रयं // पणा | जन्मीलितत्रणेवाद्य / माद्यदर्तिरियं पुनः // मृत्यवे निर्यती कृन्नात् / तपस्विजिरवार्यत // 60 // | प्राणानां प्रतिवरस्या / वत्स तावत्त्वमागतः // अथो वियोगपाथोधौ / मनामेतां समुघर // 61 // त. | तः कुलपति नत्वा / जगदे गुणवर्मणा // श्मां जीवयता तात / दत्तं मे जीवितं त्वया // 65 / / तुं दिलगिर न था, जेनेमाटे तुं श्रापघात करे ने ते तारो स्वामी त्रण दिवसोबाद तने अहिं मा. रा आश्रममा मळशे. // 27 // एवी रीतनी पाशायी तेणीने मृत्युयी बचावीने हं यहीं पाश्रममा लाव्यो , अने यहीं फलाहार करी केटनेक कष्टे तेणोए त्रण दिवसो व्यतीत कर्या ने // // 50 // (रसीथी) नरायेलां गुममांनी पेठे दुःखना नगराथी पाली ते आज आपघातमाटे ज वा लागी, त्यारे केटलीक महेनते तापसोए तेणीने अटकावी . // 60 // एवामां हे वत्स! ते. पीना प्राणोनो सादी तुं यहीं भावी पहोंच्यो बुं, हवे वियोगसमुद्रमां बुडेली या तारी स्त्रीनो तुं. उघार कर ? // 61 // पनी गुणवर्मा कुमार कुलपतिने नमीने बोल्यो के हे तात! या मारी P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust