________________ १४ए T धम्मि- पश्चाप्रौढरणारूढे / यः स्वं धनुरनामयत् / / पूर्वमेव नमंतिस्म / शिरांसि रिपु नुजां // 4 // त. | मेनं नाथमंगानां / सिंहं सिंहौजसं वृणु / अस्तु चंपाधुनाऽदृष्ट-कुहका त्वन्मुखेंदुना // 4 // सा प्रोचे नन्वयं घर-धुर्योऽहं त्वबला पुनः // धीरकातरयोर्योगः / कियनंदति चिंतय // 4 // साथ गत्वाग्रतोऽवादी-दयं बाले महाबलः / मगधाधिपतिः कीर्ति-मुखरीकृतमागधः // 50 // येएवी रीते हांसी करनारी ते राजकन्याने वळी फरीने ते प्रतीहारीए कह्यु के, // 46 // जेणे म. हारणमां चमीने पोतानुं धनुष्य तो हजु पाबळथी नमाव्युं, पण तेनी पहेलांज शत्रुराजानां मस्तको तो नमी पड्यां बे, // 4 // ते या सिंहसरखा तेजवाल अंगदेशना सिंह नामना राजाने तुं वर? के जेथी तारां मुखरूपी चंवडे करीने चंपा नगरी हवे अमावास्यारहित थाय. // // 4 // त्यारे राजकुमारी बोली के था तो सुगटोनो अग्रेसरी ने, अने हुँ तो अबळा वं. माटे हे प्रतिहारी! तुं विचार के शूरा भने कायरनो संयोग केटझुक नगी शके ? // 45 // त्यारे ते प्रतिहारी आगल जश्ने बोली के हे बाला ! जेनी कीर्ति भाटलोको गाइ रह्या ने एवो या मा ... | ध देशनो महाबल नामे राजा बे. // 50 // आ राजाए राजगृह नगरनुं राज्य एकत्र करीने P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust