________________ धम्मि- वेकेन वर्त्मना // 34 // अजलोऽपि जलार्थ स / हंसगत्या ब्रमन् वने // एकं तापसमैदिष्ट / के रोपात्तकमंडधं // 35 // दिष्ट्या दृष्टो मनुष्योऽय-मरण्ये श्वापदास्पदे // इति प्रमोदमेदवी / त. साथ मुपेयाय नूपभूः // 36 // पृष्टव्योऽसि कुतः शून्ये ऽरण्येत्र मतिमन्निति // तेन पृष्टः कुमारः . स्वं / जामपोतं न्यवेदयत् // 30 // जलैः फलैर्विनिर्माया-तिथेयों तापसेन सः // अन्यर्थ्य स्वाश्रमं निन्ये / तादृशाः कस्य न प्रियाः // 30 // स्फुरफटः सदापत्त्र-प्रोढस्तेन दृढासनः // दृष्टः कुल सुधी एक मार्गे चालतो थयो. // 34 // जलविनानो ते जलमाटे हंसनीपेठे वनमां नमवा ला ग्यो, त्यां तेणे हाथमां कमालुवाळा एक तापसने जोयो. // 35 // सारं थयु के जंगली पशुन नां स्थानसरखां था जंगलमां मनुष्य नजरे पड्यो, एम विचारी हर्षथी पुष्ट थयेलो ते राजपुत्र तेनीपासे याव्यो. // 36 // हे बुद्धिवान ! हुँ पूलु के था नज्जड जंगलमां तुं क्यांथी? एम ते तापसे पूजवाथी कुमार बोल्यो के समुद्रमा मारुं वहाण नांगी जवाथी हुँ अहिं याव्यो बु. // // 37 // पजी ते तापस जल तथा फलोवडे तेनी परोणागत करीने प्रार्थनापूर्वक तेने पोताना थाश्रममा लाव्यो, केमके तेवा मनुष्यो कोने प्रिय थ६ पडता नयी? // 30 // हवे त्यां तेपो PP.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust