________________ 310 धम्मि- बाहुल्यामुपचक्रमे // 30 // कथंचिद्भमपोतस्या-स्फलत्फलकमाप्य सः // चिराय मिलितं मित्र मिवोपगृढनिर्नरं // 31 // सप्ताहेन यदाधारा-त्तीर्णाऽब्धिः स तटं गतः // फलकं तन्मुमोचासौ। व्याधौ दाणे निषग् रिपुः // 32 // एकतः सागरं पश्य-नन्यतो गहनं वनं // एकतो मकरक्रीडां | | व्यालचापलमन्यतः // 33 // सत्वेनैकेन हस्त्यश्व-रथपत्तिपरिस्कृतं // स्वं मानयनयं दूरे। यया. होय नहि तेम तेणे समुष्मां फेंक्यो. // 25 // जगन्तां अने चपल मोजांनथी दोलायमान थया उतां पण ते हिमती कुमार व्याकुल थयाविना बन्ने हाथोयी समुद्र तरवा लाग्यो. // 30 // एवामां केटलेक प्रयासे कोश्क जांगेला वहाणर्नु नबळतुं पाटीयुं तेन हाय यावी जवायी घणे काले मळेला मित्रनीपेठे तेने दृढ आलिंगन करीने रह्यो. // 31 / / पजी तेना आधारथी ते सा. त दिवसे समुद्र तरीने कांठे गयो, तथा त्यां तेणे ते पाटीनं गेडी दी, केमके रोग गयावाद वैद्य वैरिसरखो थाय . // 31 // हवे त्यां एक बाजु समुज्ने तथा बीजी बाजु गहन वनने, ते. मज एक बाजु मगरोनी क्रीडाने तथा बीजी बाजु हाथीननी गम्मतने ते जोवा लाग्यो. // 33 // फक्त एक हिम्मतथीज पोताने हाथी, घोमा, स्थ अने पायदळयी वीटायेलो मानतोयको ते दूर-| P.P.AC. Gunratnasuri M.S... Jun Gun Aaradhak Trust