________________ धम्मि- / विरराम प्रियंवदा // 25 // एकतरपे शयानोऽथ / चिरोत्कंठितयानया / समग्रश्रमसाफल्य | ममस्त नृपनंदनः / / 26 // तावत्तत्रागतो व्योना / हतविद्याधरानुजः // पार्थीपपीडदयितं / कुमारं | सुप्तमैदान // 27 // विधाय परलोकाध्व-न्यध्वनीनं ममाग्रज / कथमेष सुखं शेत। इति बाद चुकोप सः // 20 // सुप्तमेव तमुध्धृत्य / पुरत्नं सोऽर्णवेऽदिपत् // सत्यां कर्तुमिवामुष्य / रत्नाकर इति श्रुतिं // // नसललोलकल्लोला-दोलितात्माप्यनाकुलः // सात्विकस्तरितुं सोऽब्धिं / त्रामण) थयुं . // 24 // तने तो एक बाजु रहो, परंतु तेमना पराक्रमे तो देवोने पण घणा कालसुधि पाश्चर्य नपजाव्यु , एम कहीने ते प्रियंवदा मौन रही. // 25 // हवे घणा काळग्री उत्कंठित थयेली ते कनकवतीनी साथे एक बिगनामां शयन करीने ते राजकुमार सर्व श्रम सफलपणुं मानवा लाग्यो. / / 16 / / एवामां ते मारेला विद्याधरनो नानो नाश्त्यां आकाशमार्गे याव्यो, अने स्त्रीने आलिंगन देश सुतेला ते कुमारने तेणे जोयो. // 27 // मारा मोटा जाने परलोकमां पहोंचामीने या सुखे केम सुतो ? एम विचारी ते अत्यंत कोपायमान थयो. ॥शा पजी ते सुतेलाज पुरुषरत्नने नपाडीने जाणे, समुद्रनी रत्नाकरपणानी प्रख्यातिने सत्य करखामा P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust