________________ धम्मि तयेत्युक्ते कुमारस्य / मंजीरं मंत्रिसूर्ददौ // 35 // कोऽस्ति झातोपनेता च / त्वदन्यो नष्टवस्तुनः // एवमंतहसन चुप-सुतः सुहृदमस्तुत // 36 // तेन प्राभृतवत्पाणौ / नूपुरे पुरतो धृते // मर्म| विछेव सा बाला / जे कांचिञ्चमत्कृति // 37 // तवेदं स्यान्न वा सम्यक् / प्रत्यनिझाय तलिये | // स्यान्चेत्तत्स्वपदस्पर्शात् / पुनीहीति जजल्प सः // 30 // तदादायाथ साऽवादी-भो निमित्त दे. करे ने ते. // 34 // जो घुघरीनीपेठे ते मने सादात देखाडो तो खातरी थाय, एम तेणीए क. हेवाथी ते मंत्रिपुत्रे ते कांकर कुमारने प्राप्यु. // 35 // अहो मित्र! ताराविना गयेली वस्तुने जाणनार तथा लावी थापनार वळी बीजो कोण ? एवी रीते ते राजपुत्रे मनमां हंसतां थकां पोताना मित्रनी प्रशंसा करी. // 36 // हवे गेट थापवानीपेठे ते फांकर तेणे हाथमां अगाडी धारण कर्याथी ते कनकवत जाणे मर्मस्थानमां नेदाणी होय नहि तेम विचित्र चमत्कार पामी. // 37 // त्यारे ते राजकुमार बोव्यो के हे प्रिये ! था फांकर तारुंजे के नहि? तेनी तुं बरोबर खातरी कर? अने जो ते तारुं होय तो तारा चरणना स्पर्शयी तेने पवित्र कर? // 30 // पड़ी | ते लेइने ते बोली के हे निमित्त जाणनार देवर! हजु तमो था बन्ने था भूषणो परवानुं स्थान | P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust