________________ धम्मि- वर / किं वृषणोजयत्रंश-जुवं नाद्यापि नापसे // 35 // ततो जगौ स गौरांगि / शृणु वच्मि स्फु / / | टादारं // तत्स्थानं दीप्तिमद् दूर-वर्ति मत्त्यै रासदं // 40 // मत्त्यैः दुरासदं तच्चेत् / तत्तत्र पतिते | श्मे // ऋषणे कथमानैषी-रिति राजसुतावदत् / / 41 // स प्रोचे यस्य जातः श्री-गुणवर्मा गुणा२७१ | लयः // स्वामी सर्वकलाधाम / तस्य किं नाम दुर्घटं // 42 // अविंदती गति कांचि-दरण्यपति| तेव सा // ततो व्यचिंतयद् बाला / करतल्पीकृतानना // 43 // विद्यागम्यं क तत्स्थानं / क चे. केम कहेता नथी? / / 37 // त्यारे ते सागरमित्र बोल्यो के हे गौर शरीरवाळी! हुं प्रकट रीते कहं बुं ते सांजळ ? ते तेजस्वी स्थान मनुष्यो ज्यां न ज शके तेटवू दूर रहेवू . // 40 // त्यारे राजकुमारी बोली के जो माणसो त्यां न जश् शके तो पनी त्यां पडेलां आ पाषणो तमों के मलावी शक्या ? // 41 // त्यारे सागर बोल्यो के जेने माथे धावा महागुणवान बने सर्व क लाना स्थानरूप गुणवर्मा जेवा स्वामी , तेने कयु कार्य अघळं थ पडे तेम जे ? // 42 // हवे कई पण इलाज न मलवाथी जाणे ते कनकवती वनमां पड़ी होय नहि तेम दथेळीपर मु. ::| ख राखीने विचारवा लागी के, // 53 // विद्यावडे जश् शकाय एवं ते स्थान क्या? अने या प. P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust