________________ धम्मि- -मिव जग्राह गौरवात // ए॥ अथानागमनं चर्तु-निश्चित्यारोदि बालया // हा त्वयीश तट स्थेऽपि / जाता प्रोषितपत्न्यहं // 13 // सोढः श्वशुरयोमत्युः / सोढः संपादयो मया // हा सोट व्यः कथं नाथ / यौवने विरहस्तव // 4 // नलिनीव विना नीरं / निराधारा पति विना // ए. १ए। | काकिनी कियत्काल-मवला किल नंदति // 5 // दद दक्षिणहस्तं मे / दत्वा वजनसादिकं | ॥विपर्यस्तोऽसि यहाल-मालप्य पुरुषः प्रभुः // 6 // अहं तत्राप्युपेत्य त्वा--मनुनीयानये ननु जाववालां मानीने तेणाए गौरवपूर्वक पागं ग्रहण की..॥ 7 // हवे मारो स्वामी आवशे नहि एम निश्चय करीने ते विचारी यशोमती विलाप करवा लागी के, हे स्वामी श्राप यहीज बेठांज. तां पण हुं भर्तारविनानी स्त्रीसरखी थर बुं / / 73 // में सासुससरानुं मरण सहन कर्यु, धननो वि. नाश सहन कर्यो परंतु हे स्वामी! या यौवनवयमां आपनो विरह मारे शीरीते सहन कखो?॥ || जल विना कमलनीनीपेठे पतिविना नीराधार थयेली एकली अबला केटलो काल नजी शके ? || 75 // हे चतुरस्वामी! स्वजनोनी समद मने पोतानो जमणो हाय थापीने हवे आप फररी बेठेला गे! अथवा आपने हुं शुं लंगो देन ? पुरुष मालीक ने. // 6 // P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust