________________ सार्थ धम्मि- शैत्यमग्नौ महो ध्वांते / शमोऽही वारि जंगले / स्नेहो जस्मनि लालिन्यं / पाषाणे कमलं स्थने | | 1 | यथा तथा यदाचार-चारिम्णा मम चेतसि // दुर्घटापि दयोदीये / सेयं जीयायशोमती i Gए || युग्मं // भृशोपतुज्यमानेन्य-विनवा जोगवत्सया // सती निर्मात्यमेषा मे / नूषा न 153 | स्पृष्टुमर्हति // 50 // अथाष्टाय्यसहस्रेण / खदीनारे समन्वितां / / वृषां प्रत्यर्पयामास / यशोम त्यै तयैव तां // 1 // नाघाता कुट्टिनीव्या या / दृग्गोचरगतापि यत् // अतः सा तां प्रनावाव्या जेम अमिमां शीतलता, अंधकारमां तेज, सर्पमां शांतपणुं, जंगलमां पाणी, राखमां चौकाश, पापाणमां नरमाश तथा स्थलपर जेम कमल // 7 // तेम जेणीना याचारनी मनोहरतायी मारा मनमां कदापि पण न आवे एवी दया नत्पन्न थडे, ते या यशोमती जयवंती वर्तो. // // घणां वपरायेलां तथा शाहुकारना वैनवतरखां एवां सतीए निर्मात्य करेलांथा आनूषणने सर्पनी फणानीपेठे मारे स्पर्श करवो पण युक्त नथी. // 50 // पनी ते कुटणीए पोतानी एक हजार ने पाठ सोनामहोरोसहित ते आनुषणो ते दासी मारफतेज यशोमतीने पागं मोकलावी यायां // 51 // नजरे पडेलां एवां पण या बाजूषण ते कुटपीरूषी वाघणे सुंध्यां पण नही, माटे तेने प्र. P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust