________________ धम्मिः // 35 // प्रणम्य प्रणयेनैनं / निविष्टं विष्टरे नृपः // पप्रब कुशलप्रश्न-पूर्वमागमकारणं // 16 // मा कुशलः कुशलोदंत-मुदित्वा मंत्रिपुंगवः // एवं निवेदयामास / कार्यतत्वं महीनुजः / / 99 / / पु. नाग नागकन्येव / भुवमुद्यि निर्गता // श्रीश्रीषेणमहीजर्तुः / श्रीपुरस्वामिनः कनी / 70 / / 35 नाम्ना कनकवत्यस्ति / कनकातिरछूता // मांगव्यदीपिकेवास्त–तमः कल्याणकारणं॥॥ | लाविलासिनीकेलि-वसतिः श्रुतपारगा // अनाहार्यमलंकारं / वपुषः सापुषयः // 7 // तन्वा | प्रेमपूर्वक नमस्कार करीने ज्यारे ते बासनपर बेठो त्यारे राजाए कुशल पूजवापूर्वक तेने प्राववार्नु कारण पूज्यं. // 16 // त्यारे ते चतुर मंत्री कुशल समाचार कहीने नीचे मुजब पोताना राजानुं कार्य कहेवा लाग्यो. // 7 // हे उत्तम पुरुष ! पृथ्वी जेदीने निकळेली जाणे नागकन्या होय नहि तेम अमारा श्रीपुरनगरना स्वामी श्रीषेण राजानी एक कन्या जे. // 70 // तेणीनुं नाम कनकवती , तथा नष्ट करेल के अज्ञानरूपी अंधकार जेणीए एवी अने जाणे कल्याणना कारणरूप मंगलदोवी होय नहि तेवी अद्भुत सुवर्णसरखी कांतिवाळी . // 17 // कलानरूपी स्त्रीनने क्रीमा करवाना घरसरखी तथा शास्त्रोना पारने पहोंचेली एवी ते शरीरनी अनुपम था. P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust