________________ धम्मि- धुना // 7 // तदेहि कंपीठे मे / परिरन्य दृढं 'पृणु // चिरचिंतितमावन-मित्रमृत्युमनोरयं / / // // वणिग्योगाद्रणे वैरि-वारणेऽनुपयोगिनः // नवतादवतारस्ते / देवादेवं फलेग्रहिः ॥ए| | निस्त्रिंशोऽसि वधे पत्यु- शंकिष्टा मनागपि / / अनुशिष्येति सोऽकुंठं / कंठे खामवाहयत् // // 1000 // . तदा तं: पवनोध्धूत-पत्रपाणिप्रकंपनैः॥ न्यवारयन्निव जर-त्तरखो मृत्युसाहसात् // 1 // क. मारो नजीकनो संबंधी ने, // // माटे तुं पाव? अने मारा कंठने खूब नेटीने घणा वख. तथी:चिंतवेलो तथा दुःखीनना मित्रसरखो मारो मृत्युनो मनोरथ तुं सफल कर? // ए // दै. वयोगे तने वणिकनो संग यवाथी रणसंग्राममां वैरीनने निवारवामां तुं उपयोगी थ६ शक्यो नः थी, परंतु बाजे यावी रीते तारो.अवतार फलीत थाने ? // // तुं निस्त्रिंश एरले निर्दय छो, माटे स्वामीना वधमाटे तारे जरा पण शंका करवी नहि, एम कहीने अटकावविना तेणे पोताना कंठपर तलवार चलावी. // 1000 // . ते वखते पवनथी कंपेला पत्रोरूपी हाथ हलावीने जोर्ण वृदो तेने मृत्युना साहसयी जाणे | P.P.AD, Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust