________________ धम्मि- स्थितोऽसि जीव किं क्लीव / प्राणा व्रजत सत्वरं // प्राणानां मार्गदानाय / जव रे हृदय दिया / / // 73 // एवं विकल्पसंदोहै-र्दधानो मृत्युसाहसं / / जाताऽशुकनबह-दारादेवावलिष्ट सः // 4 // | युग्मं // शुष्यइल्लिगणं दृश्य-कूपं जीर्यन्महीरुहं // ययौ बहुबिलं नाकु-संकुलं स जरहनं // // 5 // तत्र निर्मुक्तसंसार-सुखाशो मरणाग्रही // कृपाणं निजपाणिस्थ मज्यधादियनंदनः / / // 76 // मतं धनं गता भार्या / गतस्तंत्रो गतं गृहं // स्वामिजक्त त्वमेवासि / मम संनिहितोऽ. लदी चाव्या जान ? वळी हे हृदय! तुं पण प्राणोने मार्ग प्रापवामाटे चीराश्ने बे टुकड़ा था जा? // 73 / / एवी रीतना विकल्पोना समूहोथी मृत्युना साहसने धारण करतोथको ते धम्मिल जाणे अपशकुन थयु होय नहि तेम ते घरने बारणेथीज पागे वन्यो. // 4 // पड़ी ते सुका. ती वेलझीजना समूहवाळ, पडी जता कुवावाळां, जीर्ण थतां वृदोवाळां, घणां दरोवानं तथा . दरोधी नरेलां एवां एक जीर्ण वनमा गयो. // 55 // त्यां संसारसुखनी याशा गेडीने मर. वामाटे तैयार थयेलो शेउनो पुत्र ते धम्मिल पोताना दाथमा रहेलां खाने कहेवा लाग्यो के, // 6 // धन गयु, स्त्री गश्, व्यापार गयो, घर गयुं, परंतु हे स्वामिभक्त खा! हवे तो तुज ए. . P.P.Ac, Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust