________________ धम्मि- करणेन विलंध्य सः / / सुगुरोर्गुणरत्नस्य / सविधे सुविधेर्ययौ // 70 // गुणवर्माथ जावारि-नि | मायरसिकस्ततः // कातरैऽर्धरां दीदा-मादत्तासिलतामिव / / 71 // ज्ञश्च गतनिद्रा सा / प्रातः कनकवत्यपि // पार्श्वे प्रियमनालोक्य / चकितेवानवत्दणं // 2 // असौ शरीरचिंताय / गतः 342 कापि समेष्यति // विलंब्येति दणं शोकं / विनापि विललाप सा // 73 // तज्ज्ञात्वाऽशोधि सर्व ते कुमार केदखानामांथी जेम तेम वासभुवनमांयी केटोक प्रयासे निकली गयो. // // प जी वीजळीनी माफक किलो नलंगीने ते नत्तम पाचरणवान गुणरत्न नामना गुरुनी पासे गः यो. // 70 // पनी अंतरंग शत्रुनने मारवामां रसिक थयेला ते गुणवर्मा कुमारे कायरोथी न ले. इंशकाय एवी तलवारसरखी दीदा ग्रहण करी. // 1 // हवे प्रजाते जागेली कनकवतो पण पोतानी पासे नारने न जोवाथी दाणवारसुधी चकितजेवी थर गश्. / / 72 // खरेखर देहाचं. तामाटे ते क्यांक गया होशे, एम विचारी दाणवार राह जोयाबाद ते शोकविना पण रमवा ला. गी. // 3 // पछी ते हकीकत जाण्याबाद तेणीना मामाए पृथ्वीपर सर्व जगोए गुणवर्मानो तलास करावी, परंतु जाणे आकाशमां नमी गयो होय नहि तेम क्यांय पण तेनो पत्तो लाग्यो | P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust