________________ धम्मिः स्वयमाश्रवमुख्योऽपि / वारिताश्रवविप्लवः // 4 // अस्य दूरेऽस्तु सुश्रूषा / वचोऽप्येकं सुखाकरं // माई| अास्तां वचोऽस्य निःशेष-दुःखोलेदाय वंदनं // 40 // दूरेऽस्तु वंदनं वीदा-प्यस्य वश्यकरी | श्रियां // वीदाप्यस्तु ध्रुवं नाम-स्मृतिरप्यस्य पापनित् // 4 // तत्तत्परिनवार्चिष्म-दवा यात्रु श्शन | न्मम व्यथा / विजिदे जलदेनेव / साधुना साधुनामुना // 20 // स एवमालपन्नेव / सृष्टिवल्ली नहोता. // 46 / / एकांते प्रमदागोगनागपि एटले हर्षने अनुजवनारा होवा उतां पण ते ब्रह्मच यथी निर्मल हता, तथा स्वयमाश्रवमुख्योऽपि एटले पोताना नियमो पाळवामां तत्पर उतां पण ते थाश्रवोना पद्रवने निवारनारा हता. // 4 // तेमनी सेवा तो एक बाजु रही, परंतु तेमनुं ए. क वचन पण सुख करनारं हतुं, वली तेमनुं वचन तो एक बाजु रहो, परंतु तेमनुं वंदन सर्व दु:खोने नाश करनारं हतुं. // 4 // वली तेमनुं वंदन एक बाजु रडं, परंतु तेमनुं दर्शन पण ल. मीने वश करनारं हतुं, वली तेमनुं दर्शन पण एक बाजु रह्यु, परंतु तेमना नामनु स्मरण पण खरेखर पापोने नाश करनार हतुं. // 4 // ते ते पराभवरूपी अमियो नत्पन्न थयेली जे व्यथा | मने थर हती, ते व्यथा वरसादथी जेम तेम या साधुना दर्शनथी मारी दूर थने. // 20 // P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust