________________ धम्मि काराकारसंवरं // 46 // किं ते कांते स्मृता अद्य / बंधवः स्नेहसिंघवः॥ यदुन्मनायसे तेने यंसार्थ नुयुक्ता जगाद सा // 4 // त्वयि संनिहिते मन्ये-ऽरण्येऽपि स्वं दिवौकसं // स्मर्तयो जीवितव्ये श। तन्मे त्वदपरोऽस्ति कः // 4 // स दध्यिवांस्ततो विश्व-परीक्षणविचदाणः॥ कपोलकल्पना३३५ मात्र- मेष वाग्विस्तरो ध्रुवं // 45 // चिरपरूढविश्रंग-प्रेमयोः खलु पुस्त्रियोः // व्यनक्ति प्रत्युत | स्नेहा-नावं चाटुवचनमः // 20 / / श्रस्या गूढोऽप्यन्निप्रायः / प्रायः प्रकटयिष्यते // कामवीरे | प्रिये ! आजे शुं तने स्नेहना सिंधुसरखा तारा बंधुन याद याव्या ? के जेथी तुं नचक मनवा|ळी जणाय ने, एवी रीते तेणे पूजवाथी ते बोली के, // 7 // हे जीवितेश! आप मारी पासे बगे तो हं या जंगलमां पण मारा आत्माने देवतुल्य मानुं बुं, वळी यापशिवाय मने बीजो कोण याद करवालायक बे ? // 4 // हवे ते सर्व परीक्षा मां विचक्षण कुमार विचारवा लाग्यो के खरेखर या तेणीनी वचनचतुराश् कपोलकल्पनारूप . // 4 // घणा काळयी जामेला विश्वा. सबने प्रेमवाळ स्त्रीपुरुषनो जोमांवच्चे 'थती माखणीयां वचनोनो क्रम नलटो स्नेहनो बनाव सूचवे // 20 // या स्त्रीना गूढ अभिप्रायने पण पृथ्वीमां वावेलां बीजने जेम जल तेम पायें | P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust