________________ धम्मि- तैः प्रतिशब्दितैः // वाचं दवेडामिवादत्त / वैरिपदानयंकरौं // 1400 // रे पाप कठिनालाप / जी / रुजांपक तापक // वीरमानिन्निमां मुंच / बालां मम पुरो भव // 1 // ग्रस्यते बलिना हीन-बलः कुलकलंकिना / / अयमारण्यको न्याय-स्त्वया चैत्येऽवतारितः // 2 // मा मंस्था यकिनार्चा मे 304 / जविता विघ्नशांतये // कृतं ह्यविधिना पुण्यं / प्रत्युतानर्थवद्यतः // 3 // यथा गुणकर वैद्यो-पदे. शात्कृतमौषधं // यथा गुरूपदेशेन / स्मृतो मंत्रः फलप्रदः // 5 // यथा कृषिः कृता काल / एव ग्यो के, // 1400 // अरे! पापी! कठोखचनी! बीकणने मरावनारा! ताप आपनारा! तथा सुनटनों डोळ राखनारा! या बालिकाने बगेडीने मारा सामो याव? // 1 // कुळमां कलंक नृत ब. लवान निर्बलने ग्रसी जाय , एवो या जंगली न्याय तें अहिं जिनमंदिरमा उतार्यो बे. ॥शा वळी एम पण तुं नदि मानजे के या जिनपूजा मारां विघ्नो शांत करशे, केमके अविधियी करेवु पुण्य पण उलटुं अनर्थोने करनालं. // 3 // वळी वैद्यना नपदेशयी करेलु औषध जेम | गुणकारी याय , तथा गुरुना उपदेशथी याद करेलो मंत्र जेम फल थापनारो थाय ने, // 5 // तथा अवसरेज करेली खेती जेम धान्यनी वृद्धि करनारी थाय ने, तेम धर्म पण गुरुनी माझा. P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust