________________ 320 धम्मि- ___भव्या मानुष्यतां जाग्यैः / प्राप्य रत्नखनीमिव // विषयाश्मविवेकेन / कार्यो रत्नत्रयाग्रहः // / . मा // 14 // जदारा नो दारा विवृतविनया नापि तनया / विदग्धा न स्निग्धा बिरदवरमा नापि च र. मा // न च स्वामी चामीकरनिकरदातापि शरणं / विना जैन धर्म गवति जवकूपे निपततां // 15 // श्ह लोकसुखे रक्ताः / परलोकपराङ्मुखाः // ही कुर्वति जनाः पापं / जवलदविनाशकं // 16 // मोहोत्कटकुटुंबस्य / यधर्मस्यावधीरणं / / रीरीधातूररीकारा-तदर्जुनविवर्जनं // 17 // श्रुत्वेति दे. हे जव्यो! जाग्ययोगे रत्नोनी खाणसरखो मनुष्यजन्म पामीने विषयरूपी पत्थरोने बोमीने रत्नत्रयन ग्रहण करवु. // 14 // या संसाररूपी कुवामां पडता प्राणीनने जैन धर्मविना मनोहर 'स्त्री, विनयी पुत्रो, चतुर स्नेहीन, हाथीननी उत्तम शोजावाळी लक्ष्मी तथा सुवर्णनो समुह दे. नार शेठ पण शरणरूप थतो नथी. // 15 // खेदनी वात जे के या लोकना सुखमां आसक्त थइने तथा परलोकमाटे बेदरकार रहीने माणसो लाखो वोने नाश करनारुं पाप आचरे ने. // 16 // मोहरूपी विकट कुटुंबवाळा माणसे धर्मनी जे अवगणना करवी ते पितलनी धातु ले. | ने सुवर्णने तजवा जेवू . // 17 // एवी रीतनी पापोना आवेशने नाश करनारी श्राचार्यनी दे / P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust