________________ 16. धम्मिन दैववशंवदा // 30 // युग्मं // धम्मिलोऽपि ततो जीर्णो-द्यानात्याप नवं वनं // पचेलिमफलान म्र-दादामंडपमंडितं // 35 // सांरंनागृहकोम-क्रीडदबीडकामुकं // दरपुष्परसासार-सुरजी. ततलं // 40 // युग्मं // किशलश्रीफलांजोज-रंजास्तंजपिकारवैः / / स्मार्यमाणः प्रियापाणिस्तनास्योरध्वनीनसौ // 41 / / ब्रमन जमवत्तत्र / हुमालोकनतत्परः // पुरः स्फुरशुणग्राम-रत्न जधारासरखां तीव्र सतीव्रतवाळी ते वसंततिलका वेश्या दैवने अाधीन थश्ने कुलीन स्त्रीनीपेठे दिवसो व्यतीत करवा लागी. // 30 // हवे धम्मिल पण ते जीर्ण वनमांथी निकळीने पाकेला फळोथी नमी गयेला डादाना मांडवानथी शोजावाळा एक नवीन बगीचामां दाखल थयो. // // 35 // ते बगीचामां घाटां केळनां घरोनी अंदर लारहित कामुको क्रीडा करता हता, तथा त्यांनु पृथ्वीतल पण खरतां पुष्पोना मकरंदना वरसादथी सुगंधी थयेबु हतुं. // 40 // त्यां नवां कुंपळो श्रीफलो कमल केळना स्तंगो तथा कोयलना नादथी ते पोतानी प्रियाना हस्त स्तन मु. ख साथळ तथा वचनोने याद करवा लाग्यो. // 41 // त्यां वृदोने जोतोयको जमरनीपेते ते जमवा लाग्यो, एवामां अगाडीना भागमां स्फुरायमान थता गुणोना समूहरूपी रत्नोने नत्पन्न कः | P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust