________________ सार्थ 252 रो वैलि धम्मि- ऽत्र / नृपः खेदमुपागतः // 60 // क्रमागतं कुमारेंड-मुद्दिश्याथ जगाद सा / / गौरांगि गुणवानेष | | गुणवर्मावगम्यतां / / 61 // दृढधर्मकुलव्योम–सोमः कोमलगीरसौ / कलाविलासः प्रीत प्रणयिस्वांतकैरवः // 6 // अस्यास्यशशिनि श्याम-परिवेष श्वेदितः // श्मश्रूनेदोऽज्जवदीति-क| रो वैरिकुलेऽखिले // 63 // विशालं विदधे वदो / यस्य धाता धियां निधिः / सुखवासाय विद्या नां / विनयादिगुणैर्युजां // 64 // विधित्ससि विधेः सृष्टि-साफल्यं चेदिचदणे / / संगवस्त्र वरारो. द पामवा लाग्यो. // 60 // हवे अनुक्रमे थावेला गुणवर्मा कुमारने नद्देशीने प्रतीहारी बोली के, हे गौर शरीरवाळी ! आने तारे गुणवर्मा नामे गुणवान राजपुत्र जाणवो. // 6|| आ कुमार दृढधर्म राजाना कुलरूपी याकाशमां सूर्यसमान, कोमल वाणीवाळो, कलाउने विलास करवानी चुमिसरखो तथा स्वजनोना हृदयरूपी कैरवने खुश करनारो . // 6 // पाना मुखरूपी चंद्रनी यासपास रहेला श्याम कुंमाळांजेवी देखाती दहाडीमुनी नत्पत्ति सर्व वैरीनना समूहने गय करनारी थ. येली . // 63 // विनयादि गुणोवाळी विद्यानने सुखे रहेवामाटे बुधिशाळी विधानाए था कु. मारनुं वदःस्थल विशाल बनाव्युं . // 64 // हे उत्तम अने विचक्षण स्त्री! जो तुं विधातानी P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust