________________ 277 धम्मि- मान खर्वयन मानं / मनसस्त्वरया ततः / नत्तरस्यां विमानं त-द्ययौ किंचिन्महासरः // 15 // / | वनं तदा तदासन्नं / दासनंदनमाप्य तत् // तस्थौ चिराध्वसंचार-परिश्रांतमिव स्वयं // 76 // वि. मानतः समुत्तीर्य / सा चचाल वनावना // पृष्टस्थितः कुमारोऽपि / दंपयोः किं पृयगतिः // 7 // पुरः स जैन नवनं / वनशृंगारमैदत / / स्फुरद्रत्नप्रजाऽपास्त-ब्रह्मांतरतमोगरं / / 90 // प्रियया पा. विमान चालवा लाग्यु. // 14 // पनी पोताना वेगथी मनना प्रमाणविनाना वेगने पण जीततुं थकुं ते विमान त्यांथी उत्तर दिशामा कोश्क महासरोवरप्रते गयु. // 75 / / त्यां नजीक रहेलां तथा नंदनवनने पण जीतनारां एवां एक वनमा जश्ने ते विमान घणो वखत मार्गे चालवायी जाणे थाकी गयु होय नहि तेम पोतानी मेळेज स्थिर थयु. // 76 // हवे ते कनकवती विमानथी नतरीने वनने मार्गे चाली, तथा तेनी पागल ते गुणवर्मा कुमार पण चाव्यों, केमके स्त्रीभरतारनी शुं जूदी गति होय ? // 9 // बागल चालतां तेणे वनने शोनावनाएं तया तेजस्वी रत्नोनी कांतिथी बहारना तथा अंदरना अंधकारना समूहने दूर करनारुं एक जिनमंदिर जोयं. // 70 // पनी साथे रहेली स्त्रीसहित जिनमंदिरमा प्रवेश करतों एवो ते कुमार नवो परणेलो P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust