________________ सार्थ धम्मि- न तु निर्धर्मनारीवा-विश्वासोपहतं मनः // 11 // धन्यास्ते मुनयो धीराः। शीलसन्नादशालिनः॥ | योषावाग्विशिखा येषां। हृदयं व्यथयंति न / / 72 // कुट्टिनीयं गुरुपाया / यस्याः शिदामिमां स्मरन् // न पुनर्निपतिष्यामि / वाक्पाशे पणयोषितां / / 73 // अथ गत्वा गृहं कुर्वे / चिंतां प्रणयिनामिति // ध्यायन पुरे प्रविश्यासौ / खसौधद्दारमासदत | // 4 // किं स्तः सुरेंद्रदत्तश्च / सुभद्रा च शुन्नास्पदे // तेनेत्युत्कंठया पृष्टः / कश्चिनिश्चिनधी गौ न सारं नथी. // 11 // ते धैर्यवान मुनिनने धन्य बे के जेजे शीलरूपी बखतरथी शोजी रहे. लाने, अने तेथी स्त्रीना वचनोरूपी बाणो तेजना हृदयने नेदी शकता नथी. // 12 // खरेखर ते कुटण) मारी गुरु थ , के जेणीनी आ शिदा याद करीने हुँ फरीथी वेश्याना वचनपा. शमां पडीश नहि. // 13 // हवे घेर जश्ने हुं मारां संबंधिननी तपास करु, एम विचारी नगरमां जश् ते पोताना महे खने बारणे याव्यो. // 14 // शुं अहिं कल्याणना स्थानसरखा सुरेंद्रदत्त अने सुन्नद्रा ने ? एवी रीते तेणे उत्कंगपूर्वक पूच्याथी कोक बुध्विान माणसे तेने कह्यु के, // 15 // हे शांतवेष. P.P.AC.Gunratnasun M.S. Jun Gun Aaradhak Trust