________________ सार्थ धम्मि- षोक्तिरेवेति / विपश्चिनिश्चिकाय सः // 11 // पश्चादुल्लापयिष्यामि / लघु तां शस्त्रकर्मणा // प्र थमं दर्शयिष्यामि / तब कैतववाक्फलं // 42 // इत्युक्त्वा तां गले धृत्वा / क्रंदती कुरीमिव // स्मरेष्टदेवतामेवं / जिघांसुर्निजगाद सः // 13 // साप्यवादीदहो खेट / झातमेतद नृत्पुरा // संग तेस्ते यमस्येव / जवितायतिरीहशी // 4 // नवंचितनवारण्यः / कारुण्यरससागरः // शरण्यः श. रणं पूर्व-मयमेव जिनोऽस्तु मे // 55 // पेष्टुं कंकतवलिदाः / परोलदानरीनलं // शरणं गुखे बे एम कहेते बते ते हुशियार विद्याधरे निश्चय कर्यो के खरेखर आ तेणीनुं जूठं बहानुं जे. // 1 // ते कनकवतीने तो हुँ पाउलथी तुरत शस्त्रवडे हलकी करीश, हमणा तो प्रथम तारां कपटी वचननु फल तने देखाडीश. // 72 // एम कहीने आनंद करती कुतरीनीपेठे तेणीने ग. ळांमांथी पकडीने मारवानी श्वावाळो ते विद्याधर कहेवा लाग्यो के तारा इष्ट देवचं स्मरण क. र? || 53 // त्यारे ते पण बोली के अरे खेचर! अमोए प्रथमथीज जाण्यु हतुं के यमसरखो जे तु तेनी सोबतथी आज परिणाम यावशे. / / 4 / नळंगेल ने संसाररूपी वन जेणे तया करुणारसना समुष्सरखा एवा था जिनेश्वरज प्रथम मने शरणरूप थान ? // 55 // पनी का P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust