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विद्यार्थी जैनधर्म शिक्षा मानवका जीव मरनेके बाद एक गायके गर्भ में जाकर छोटा उसी बछडेके आकार होजाता है या एक हाथीका जीव मरनेके वाद यदि चींटी जन्मे तो चींटीके आकार होजाता है। यह बात प्रत्यक्ष प्रगट है, हम व आप सब अनुभव कर सक्त है।
शिष्य-तब यह तो बताइये कि इस आत्मामें कहांतक फैलनेकी शक्ति है ।
शिक्षक-इस आत्माका आकार निश्चयसे या असलमे इतना बड़ा है जितना बडा यह जगत है। किसी समय यह सब जगतमें भी व्याप जाता है।
शिष्य-फिर इसको निराकार क्यों कहते है ?
शिक्षक--जडमई आकार आत्माका ऐसा नहीं है जिसे हम देख सकें या छूसकें, इसलिये इसे निराकार कहते है । यह अमूर्तीकके ही अर्थमे है। कोई भी आकार आत्माका नहीं है, यह अर्थ निराकारके नहीं है।
शिष्य-अच्छा! अपने यह बताया था कि सब आत्माएं स्वभावसे बराबर है, संबका मूल स्वभाव एकसा है। सो मैं आपके समझानेसे समझ गया कि हरएक आत्मा स्वभावसे सब कुछ जाननेकी शक्ति रखता है, परम गातिमय है, परमानन्दमय है व अमृर्तिक है अर्थात् हरएक आत्मा स्वभावमे परमात्मा या ईश्वर है। अब यह बताइये कि फिर यह अशुद्ध क्यों है तथा यह विचित्रता जगतकी आत्माओंमें क्यों मालूम पडती है ? क्यों एक पशु है; क्यों एक पक्षी है, क्यों एक मानव है, क्यों एक स्त्री है, क्यों एक पुरुष है, क्यों सनी सिता है गो. नी
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