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विद्यार्थी जैनधर्म शिक्षा 1. हों, निर्भीक हों, धनवानों के मुंह ताकनेवाले न हों, वे बाहरी चारित्र खानपानादिको उतना ही पाले जितने पालनेसे वे हर देशमें जीवननिर्वाह कर सकें, सवारीपर जासकें, जहन व रेलपर सफर कर सकें। चे मदिरा व नगा न पीवें, मांस न खावें, अन्यायपूर्वक किसीको सतावें नहीं. अन्यायरूप झूठ न बोलें, चोरी न करें. जरूरी वस्त्रादि व पैसा व नौकर आदि रखमके, ब्रह्मचर्यको अच्छी तन्ह पालें। उनको रेलपर, जहानपर विकता हुआ खान पान लेने का परहेज न हो, केवल मद्य माममे जरूर बवे । ऐसे त्यागियोंकी बहु संख्यामें, इसलिये जरून्त है कि वे भारतमें सर्वत्र जाकर आत्मकल्याणका, च. सुख शांनिका मार्ग बनासके तया भाग्न के चाहा सीलोन, ब्रह्मा . यूरोप, अमेरिका, आस्ट्रेलिया, आफ्रिका आदि स्थानों पर भी जायके;
और सत्यका प्रचार करसके, सच्चा मुख गातिका आय व परो. पकारका मार्ग बनागरे, प्राणियोंको मांसाहारसे छुडाम के, जीवदया का प्रचार करसके । इस समय जैन व्यागरी व जैन कर्मचारी, ब्रह्मन्गमें, श्याममें, जापान्में, ची-मे, यूरूपमें, आफ्रिकामें प्रायः हर, जगह फैल गये हैं, उनको भी उपदेशकी जरूरत है, नहीं तो वे . बिगड़कर मांसाहारी आदि होजायंगे व जैनधर्मको भूल जायगे । जैन साधु पैदल चलने वाले व भिक्षासे भोजन करनेवाले वहां पहुंच नहीं सक्ते है । जगतमें सत्यका प्रचार करना बहुत जरूरी है। शिष्य-ऐसे विरक्तोंके लिये भोजनपानादि खर्चका क्या प्रबन्ध होगा , . शिक्षक-जो घरसे धनसम्पन्न है उनको इतना धन कहीं जमा करके त्यागी होना चाहिये जिसके व्याजसे वे अपना सर्व खर्च चला सकें । हां ! ऐसे त्यागियोंको यह छुट्टी सच्चे व मानरहित