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संचर, निर्जरा और मोक्ष ।
[१६१ वहार सम्यक्दर्शनकी जरूरत है। सच्चे देव, शास्त्र, गुरुमें विश्वासा करना तथा सात तत्वोंमे विश्वास करना व्यवहार सम्यकदर्शन है। ____ हम दूसरे अध्यायमें णमोकार मंत्रका अर्थ समझाते हुए बता चुके हैं कि अरहंत व सिद्ध देव है। आचार्य, उपाध्याय साधु गुरु है। उनके रचित ग्रन्थ शास्त्र है।
सात तत्वोंका संक्षेप स्वरूप भी हम बता चुके हैं। जब कोई श्री जिनेन्द्रदेवकी भक्ति करता रहेगा, शास्त्रोंका अभ्यास करता रहेगा, धर्मज्ञाता गुरुसे समझता रहेगा व एकांतमें नित्य बैठकर मनन करेगा कि आत्माका स्वभाव भिन्न है व कर्मादि भिन्न है तब अभ्यास करते करने कभी ऐसा अवसर आसक्ता है जब सम्यक्दर्शनके रोकनेवाले कर्म दर्शनमोह तथा अनन्तानुबंधी कषाय उपशम होजाते है और उपशम सम्यक्दर्शन पैदा होजाता है । तब मिथ्यात्व
और अनंतानुबंधी कपायोंके कारण जो कर्म आते थे उनका आना बन्द होनाता है।
अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य तथा परिग्रह त्याग इन पांच व्रतोंको पूर्ण पालनेसे अविरत भाव विलकुल छूट जाता है व इन्हींको, थोड़ा पाल लेनेसे जैसा गृहस्थोंके संभव है कुछ अविरत भाव दूर होता है। प्रमादके दूर करनेके लिये अप्रमाद भाव प्राप्त करना चाहिये । धर्म कार्योंमें कभी आलस्य न करना चाहिये । कषायोंके दूर करनेके लिये वीतराग भाव बढाना चाहिये। योगोंकी प्रवृत्ति मिटानेको मन वचन कायको वश रखना चाहिये । साधारण उपाय कर्मोके आसवोंके रोकनेका यह है कि जिस जिस बातकी अपनी . आदत पड़ी हो उसको त्याग देना चाहिये । जैसे किसीको जुआ